बिहार: कुदरत की मार से संकट में किसान

बिहार

आम-लीची की फसल को भारी नुकसान

आंधी-पानी और ओलावृष्टि के रूप में कुदरत का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले करीब एक हफ्ते से यह सिलसिला सूबे के अलग-अलग हिस्सों में चल रहा है। लगभग पूरा प्रदेश इस प्रकोप की चपेट में आ चुका है। कुल कितना नुकसान हुआ, यह आकलन प्रशासनिक मशीनरी ही कर पाएगी। बहरहाल, जो स्पष्ट है उसके मुताबिक करीब डेढ़ दर्जन लोगों की जिंदगी जा चुकी है, जबकि रबी और आम-लीची की फसल को भारी नुकसान हुआ है।

किसान खुश थे कि इस साल ये फसलें बहुत अच्छी हैं, पर इन्हें नजर लग गई। किसान जून-जुलाई में सूखा और इसके तुरंत बाद बाढ़ की कल्पना करके भयभीत रहते हैं, लेकिन इस साल इससे पहले ही उनकी कमर टूट गई। वक्त की मांग है कि केंद्र और राज्य सरकार किसानों को सहारा देने के लिए आगे आएं और उनका मनोबल टूटने से बचाएं। राज्य के विकास की कवायद में किसानों की अहम भूमिका है। गुजरे वर्षों में यदि राज्य की विकास दर किसी हद तक ठीक-ठाक दिखती है, तो उसमें कृषि सेक्टर का उल्लेखनीय योगदान है।

राज्य सरकार भी अपनी ओर से कृषि और किसानों की बेहतरी के लिए कोशिश कर रही है, पर मौजूदा संकट देखते हुए सरकार से बड़ी राहत की उम्मीद बांधी जा रही है। राज्य सरकार को तुरंत अधिकारियों और कृषि वैज्ञानिकों की टीम गठित करके आपदा से हुए नुकसान का गहन सर्वे करवाना चाहिए और इस रिपोर्ट के आधार पर किसानों को हुए नुकसान की यथासंभव अधिकतम क्षतिपूर्ति की जानी चाहिए। केंद्र सरकार की भी जिम्मेदारी है कि बिहार के किसानों की मदद के लिए दिल खोलकर धनराशि मुहैया कराए। राज्य सरकार को इसके लिए शीघ्र ही अपना प्रस्ताव केंद्र सरकार को सौंप देना चाहिए।

कुदरत पर किसी का वश नहीं। मौसम को लेकर विज्ञानसम्मत सटीक आकलन भी नहीं हो पाता। इसके बावजूद लगभग तय है कि हमेशा की तरह इस साल भी राज्य के किसान सूखा और बाढ़ की दोहरी मार ङोलेंगे। यह मानकर राज्य सरकार को अग्रिम बचाव प्रबंध कर लेने चाहिए। किसानों के लिए भी यह धैर्य रखने का समय है। उन्हें खुद भी आगामी महीनों में बाढ़ और सूखे की आशंका देखते हुए अपनी सुरक्षा के प्रति सचेत रहना होगा।