हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज से सोमवार शाम यमुना में 94 हजार क्यूसेक पानी छोड़ा गया जो बुधवार दोपहर दिल्ली आ गया। एक बार फिर यमुना का जल स्तर खतरे के निशान यानी 204.8 मीटर पर आ गया। एक्सपर्ट कहते हैं कि यमुना के खतरे के निशान के लेवल का अब कोई मतलब ही नहीं रह गया। यह निशान केवल कागजी ही है और इसका मतलब यह नहीं है कि दिल्ली को किसी तरह का खतरा है। आजकल बाढ़ के नाम पर सिर्फ यमुना खादर के इलाकों में ही पानी भरता है। बाढ़ आने पर सिर्फ यमुना के बीच में रह रहे लोगों को ही हटाया जाता है जो लेवल कम होते ही फिर वहीं जाकर रहने लगते हैं।
दिल्ली में यमुना का खतरे का निशान 204.8 मीटर और वार्निंग का निशान 204 मीटर है। यह निशान अंग्रेजों ने तब तय किया गया था जब यमुना का रूप बहुत विशाल था। आपको बताएं कि तब यमुना के किनारे पर लालकिला एवं दरियागंज दोनों ही हुआ करते थे यानी जहां आज रिंग रोड है, वहां यमुना बहा करती थी। इसी तरह पूर्वी दिल्ली में भी आज जहां मयूर विहार बसा हुआ है, वहां भी यमुना बहा करती थी। गीता काॅलोनी में भी पुश्ते तक यमुना का पानी होता था। आबादी की बसावट के कारण यमुना लगातार सिमटती जा रही है। कुछ साल पहले तक जहां अब काॅमनवेल्थ गेम्स विलेज और अक्षरधाम मंदिर हैं, वहां यमुना का पानी होता था। इन सबसे यमुना की चैड़ाई लगातार कम होती गई है और खतरे का निशान अब भी वहीं का वही है। खतरे के निशान का इसलिए भी मतलब नहीं रहा कि यमुना की तलहटी में बड़ी मात्रा में सिल्ट, गाद, रेत, सीवरेज, पूजा पाठ सामग्री, मलबा और तमाम तरह का कचरा जमा हो गया है। इससे यमुना की तलहटी का लेवल ऊपर आ गया है और उसकी गहराई कम हो गई है। यही वजह है कि 94 हजार क्यूसेक पानी आने से ही यमुना खतरे का निशान पार कर जाती है। 1978 में जब यमुना में बाढ़ आई थी तब ताजेवाला से 7 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया था।
एक्सपट्र्स का कहना है कि हर 25 साल में खतरे के निशान की समीक्षा होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यमुना की सफाई के लिए तीन एक्शन प्लान बनाए गए लेकिन उसका भी कोई लाभ नजर नहीं आता।