प्रेम कहानियों पर यकीन करने वाले प्यार की नई परिभाषा
Critic’s Rating: 4/5
‘सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो, प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो।’ इस गाने को 1970 में जाने-माने गीतकार गुलजार ने भले वहीदा रहमान-राजेश खन्ना की फिल्म ‘खामोशी’ के लिए लिखा हो, मगर इस गीत के बोल शूजित सरकार की ‘अक्टूबर’ पर फिट बैठते हैं। वाकई प्यार कोई बोल नहीं, कोई आवाज नहीं, एक खामोशी है, सुनती है कहा करती है…शूजित की ‘अक्टूबर’ एक अनकहे प्यार की दास्तान को बयान करती है। फिल्म के शुरुआती दौर में इस प्यार को समझने में आपको वक्त लगता है, मगर जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती जाती है, आप इसकी गहराई में उतरते चले जाते हैं। क्लाइमेक्स जहां अनकंडीशनल लव की व्याख्या करता है, वहीं आपको बुरी तरह से उदास कर देता है और आप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि ऐसी प्रेम कहानी में जीना कैसा होता होगा?
‘विकी डोनर’, ‘पीकू’ और ‘पिंक’ जैसे अलहदा विषयों पर फिल्म बनाने वाले शूजित सरकार यहां प्यार को नया आयाम देते नजर आते हैं, जो हिंदी फिल्मों से बिलकुल भी मेल नहीं खाता। फिल्म के पहले 45 मिनट बहुत ही सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ते हैं। इसे समझने के लिए आपको सब्र से काम लेना होगा, मगर जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती जाती है, किरदारों की डिटेलिंग हमें उनकी जिंदगी में उतरने पर मजबूर कर देती है। आप निष्छल जज्बातों से जुड़ते चले जाते हैं। यहां लेखिका जूही चतुर्वेदी का जिक्र करना जरूरी हो जाता है, जिन्होंने अपने लेखन के जरिए शूजित की सहजता और संवेदनशीलता का साथ दिया है। अविक मुखोपाध्याय की सिनेमटोग्राफी कई दृश्यों में पेंटिंग की मानिंद लगती हैं।
सोचने पर मजबूर
होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करनेवाला डैन (वरुण धवन) एक फाइव स्टार होटल में इंटर्नशिप कर रहा है। वह अपनी जिंदगी में किसी भी काम को गंभीरता से नहीं लेता। हालांकि, उसका सपना एक रेस्तरां खोलने का है, मगर इंटर्नशिप के दौरान उसकी ऊल-जुलूल हरकतों और अनुशासनहीनता के कारण उसे बार-बार निकाल दिए जाने की वार्निंग दी जाती है। दूसरी ओर उसकी बैचमेट शिवली डैन के मिजाज के विपरीत बहुत ही मेहनती और अनुशासनप्रिय स्टूडेंट है।
अनकहा रिश्ता
शिवली और डैन के बीच कहानी में कुछेक दृश्य ऐसे जरूर आते हैं, जहां उनके बीच एक अनकहा रिश्ता महसूस होता है, मगर लेखक-निर्देशक ने उसे कहीं भी अंडरलाइन नहीं किया। फिर एक दिन अचानक शिवली एक हादसे की शिकार होकर कोमा में चली जाती है। जिस वक्त उसके साथ यह हादसा होता है, डैन वहां मौजूद नहीं था, मगर हादसे का शिकार होने के ऐन पहले शिवली ने डैन के बारे में पूछा जरूर था। क्षत-विक्षत अवस्था में कोमा में जा चुकी शिवली की हालत का डैन पर गहरा असर पड़ता है। शिवली के अस्पताल के चक्कर काटते हुए वह एक ऐसे सफर पर निकल पड़ता है, जिसके बारे में उस जैसा 21 साल का लड़का कभी सोच ही नहीं सकता था।
‘मैं तेरा हीरो’, ‘जुड़वा 2’, ‘हम्पटी की दुल्हनिया’ जैसी तमाम फिल्मों में हिंदी सिनेमा के प्रचलित फिल्मी हीरो को साकार करने वाले वरुण धवन को देखकर आपको बिलकुल याद नहीं आता कि वे अपनी फिल्मों में नाच-गाना, रोमांस और फाइट के लिए जाने जाते हैं। यहां वे अपनी बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग डिलीवरी और नम आंखों से डैन के किरदार को जिंदा कर देते हैं। शिवली की भूमिका को बनिता संधू ने अपनी आंखों के हाव-भावों से असरदार बना दिया है। शिवली की मां का रोल करने वाली गीतांजलि राव के रूप में हिंदी सिनेमा को एक सहज और सशक्त अभिनेत्री मिली है। सहयोगी कलाकार भी बनावट से परे रियल नजर आते हैं।
शांतनु मोइत्रा का बैकग्राउंड स्कोर विषय की मासूमियत को बरकरार रखता है।
Credits: https://timesofindia.indiatimes.com/entertainment/hindi/movie-reviews/october/movie-review/63728868.cms?filter=nbttab