उत्तर प्रदेश की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बढते प्रभाव के बीच समाजवादी पार्टी (सपा) मुखिया अखिलेश यादव के लिये राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में दूसरा कार्यकाल चुनौतीपूर्ण साबित होगा।
उत्तर प्रदेश में विपक्षी दल हाशिये पर खडे है। ऐसे में सपा मुखिया के लिये विपक्षी दलों को लेकर एक साथ लेकर चलना एक बडी चुनौती होगी। सपा का राष्ट्रीय अधिवेशन सितम्बर के अन्तिम सप्ताह में है। इसमें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना जायेगा । इसके लिये सपा मुखिया के रूप में अखिलेश यादव का ही चुना जाना तय माना जा रहा है । श्री यादव का राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में अगला कार्यकाल अगले महीने से शुरू होगा।सपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा “ मुलायम सिंह यादव और उनके भाई शिवपाल सिंह यादव दिल्ली में सत्तारूढ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ है। दोनों ने राष्ट्रपति चुनाव में रामनाथ कोविंद को वोट दिया था। मुलायम सिंह यादव उप राष्ट्रपति के चुनाव में राजग के प्रत्याशी को वोट देंगे। रामगोपाल यादव भी अपने भाई के नक्शे कदम पर चलते हुए राजग को सहयोग करेंगे। इससे समाजवादी पार्टी को परेशानी हो सकती है।
उन्होने कहा कि अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव के साथ विद्रोह किया और अपने पिता मुलायम सिंह यादव को अध्यक्ष पद से हटाकर उन्हे अपमानित किया। माना जा रहा है यह सब अपने चाचा रामगोपाल यादव के इशारे पर किया और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये। जिस व्यक्ति ने ऐसा किया वह सपा के सबसे कठिन समय में प्रधानमंत्री मोदी के इशारों पर खेल रहा है।”सपा नेता ने कहा “ समय चक्र तेजी से बदल रहा है। अखिलेश यादव को महत्वपूर्ण निर्णय लेने है। यदि वह सही निर्णय लेने सफल रहे तो अपने पिता मुलायम सिंह यादव और नितीश कुमार की तरह बडे नेता बन सकते है। सपा विधायको ने बजट सत्र के दौरान सदन की कार्यवाही का बहिष्कार किया था लेकिन मतदाताओं को मजबूत विपक्ष होने का संदेश नही दे पाये ।”
उन्होने कहा कि सितम्बर के अन्तिम सप्ताह में होने वाले पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन में तस्वीर स्पष्ट हो जायेगी। इस सम्मेलन में अखिलेश यादव को एक साल में दूसरी बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने की उम्मीद है। हालांकि इस पद के लिये उनके पिता का दबाव होगा।